नई पुस्तकें >> समय की पगडंडियों पर समय की पगडंडियों परत्रिलोक सिंह ठकुरेला
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ठकुरेला जी के गीतों का अनुपम संग्रह
दो शब्द
जीवन की विभिन्न चेष्टाएँ एवं क्रिया-कलाप भावों का संचरण करते हैं। इनमें कुछ स्थायी होते हैं और कुछ अस्थायी । कविता इन्हीं भावों का प्रसार करती है। कविता स्वार्थ बन्धनों को खोलकर मनुष्यता के उच्च शिखर की ओर ले जाती है।
गीत काव्य का सहज एवं सर्वप्रिय रूप है । गीत अनादिकाल से ही मानव सभ्यता का सहयात्री रहा है । गीत मानवीय संवेदनाओं की सहज एवं सघन अभिव्यक्ति है । यह निर्विवाद रूप से सत्य है कि जन जीवन के हर व्यवहार में गीत किसी न किसी रूप में उपस्थित है। यदि गीत को जीवन से अलग कर दिया जाये तो जीवन नीरस और सारहीन प्रतीत होगा।
समय की पगडंडियों पर चलते हुए जीवन में बहुत कुछ देखने, समझने और अनुभव योग्य होता है। कभी-कभी भावातिरेक में जीवन की अनुभूतियाँ काव्य रूप में प्रस्फुटित होने लगती हैं । जीवन की सुख दुखात्मक अनुभूतियाँ ध्वन्यात्मक एवं गेय होकर गीत का रूप धारण करती हैं। यही कारण है कि गीतों में जीवन की अनुगूंज सुनायी पड़ती है।
बाल्यकाल से ही मुझे कविता एवं लोकगीतों ने प्रभावित किया है। शायद यही कारण है कि जीवन के विभिन्न पड़ावों पर मैंने जो अनुभव किया, उसने मेरे इन गीतों को जन्म दिया।
मेरे इन गीतों में जीवन की सुखद अनुभूतियाँ भी हैं एवं समाज और व्यक्ति की पीड़ा भी है। जीवन की त्रासदी एवं सामाजिक विसंगतियाँ मेरे इन गीतों की अभिव्यक्ति बने हैं। संक्षेप में कहूँ तो मैंने इन गीतों में जीवन और जगत के भोगे हुए सत्य को उजागर करने का प्रयास किया है । मुझे इसमें कहाँ तक सफलता मिली है, इसका सही निर्णय आपका मूल्यांकन ही कर सकेगा।
मैं माननीय श्री कुमार रवीन्द्र, श्री माहेश्वर तिवारी एवं श्रीमती साधना ठकुरेला सहित उन सभी का हृदय से आभारी हूँ जिनसे परोक्ष या अपरोक्ष रूप से मुझे यह गीत संकलन पूर्ण करने में सहयोग मिला है।
'समय की पगडंडियों पर' साहित्य जगत को सौंपते हुए मैं आशान्वित हूँ कि पूर्व की भाँति ही मुझे आपके बहुमूल्य सुझाव प्राप्त होंगे।
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